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BSNL Crisis
A learning for PSUs
-क्या कारण है कि किसी समय दस हज़ार करोड़ का मुनाफ़ा बनाने वाली PSU कम्पनी BSNL आज वैत्तिक संकट से गुज़र रही है? घाटा इतना बढ़ गया है कि कम्पनी के पास अपने स्टाफ़ को देने के पैसे भी नहीं हैं। ऐसा क्या हो गया? इसके क्या कारण है?
सबसे पहले नज़र डालते हैं BSNL के प्रोफ़िट-लॉस शीट पे :-
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लाभ का दौर… ⬇
वर्ष 2002-03 – 1444 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2003-04 – 5976 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2004-05 – 10183 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2005-06 – 8939 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2006-07 – 7805 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2007-08 – 3009 करोड़ रुपया लाभ
वर्ष 2008-09 – 575 करोड़ रुपया लाभ
(कुल कमाया हुआ लाभ -लगभग 38 हज़ार करोड़)
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घाटे का दौर… ⬇
वर्ष 2009-10 – 1822 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2010-11 – 6384 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2011-12 – 8850 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2012-13 – 7884 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2013-14 – 7019 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2014-15 – 8234 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2015-16 – 3879 करोड़ रुपया घाटा
वर्ष 2016-17 – 4793 करोड़ रुपया घाटा
(कुल घाटा – 49 हज़ार करोड़)
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(स्त्रोत-BSNL website)
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उपरोक्त आँकड़ों
को देखें तो पता चलता है कि BSNL के प्रोफ़िट में वर्ष 2004-05 में तगड़ा उछाल आया था। तब BSNL ख़ुद सस्ते दरों पे काल सेवाएँ उपलब्ध करवा रहा था। एक सरकारी कम्पनी होने के बावजूद निजी टेलिकॉम ऑपरेटर को कड़ी स्पर्धा दे रहा था क्योंकि तब टेलिकॉम सेक्टर में निजी क्षेत्र विकसित हो रहे थे। BSNL उनसे बेहतर था, अंधो में काना राजा।
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अगले 3-4 सालों में ही टेलिकॉम सेक्टर में निजी क्षेत्रों ने व्यापक सुधार किया और BSNL से बेहतर और सस्ती सेवाएँ देना शुरू किया। वहीं BSNL मार्केट के हिसाब से ख़ुद को ढाल कर स्पर्धा के लिए तैयार होने के बजाए अपने कर्मचारियों की तुष्टि करने में संलिप्त था।
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नतीजा ये हुआ कि आज जहाँ निजी टेलिकॉम ऑपरेटर अपने राजस्व का महज़ 5-7% ही स्टाफ़ सैलरी पे व्यय करते हैं वहीं BSNL के राजस्व का 53% हिस्सा अर्थात आधा से ज़्यादा हिस्सा स्टाफ़ की सैलरी में जाता है। इसका अर्थ है कि BSNL में ज़रूरत से कहीं ज़्यादा स्टाफ़ हैं और ज़्यादातर कामचोर जो सैलरी तो मोटी ले रहे हैं लेकिन काम एक पैसे का नहीं कर रहे हैं।
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निजी टेलिकॉम ऑपरेटर का 20 हज़ार पाने वाला लाइनमैन जहाँ दौड़ दौड़ के समय सीमा में फ़ॉल्ट अटेंड करता है, वहीं महीने का पचास हज़ार और बेहतर मेडिकल सेवाएँ पाने वाला BSNL लाइनमैन कस्टमर से बदतमीज़ी करता है, घूँस लेता है और फ़ॉल्ट अटेंड कर दिया तो शायद कस्टमर पे एहसान कर दिया…
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उपरोक्त आँकड़े
को देखें तो BSNL के मुनाफ़े में 2007 से ही भारी कमी आयी और 2009 आते आते उसे घाटा शुरू हो गया। 2011 में सबसे ज़्यादा बड़ा घाटा हुआ। इसके बावजूद पिछले 10 सालों में BSNL ने इससे निपटने के लिए कोई कारगर क़दम नहीं उठाए। कारगर क़दम उठाने के मतलब मैनपावर कम करके टैरिफ़ कम करना और सेवाएँ बेहतर बनाना ताकि कस्टमर की स्वीकार्यता बढ़े और मार्केट शेयर बरक़रार रहे। वनिस्पत BSNL का मैनेजमेंट समाजवादी अवधारणा से ग्रस्त और निहायत स्वार्थी कर्मचारी यूनियन की नाजायज़ माँगों के आगे झुकता रहा और आज अपने ही कर्मचारीयों के बोझ तले दब गया।
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कहने का मतलब BSNL की ये दशा अचानक से नहीं हुई। 2002 से 2008 तक BSNL ने जो लाभ (लगभग 38 हज़ार करोड़) और उसपे ब्याज कमाया, उसे बाद के वर्षों में घाटे के बावजूद बिना किसी कारगर सुधारात्मक क़दम के स्टाफ़ की सैलरी में व्यय करता रहा। और अब जब सारी कमाई ख़त्म हो गई तो स्टाफ़ को सैलरी देने के लिए धन भी नहीं है तब अचानक से BSNL मैनेजमेंट और उसके कर्मचारी यूनियन की नींद खुली की BSNL हालत ख़राब है,
10 साल से सो रहे थे..
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इन सब के बावजूद अब BSNL स्वार्थी कर्मचारी यूनियन आरोप लगा रहा है कि केंद्र सरकार और रिलायंस की मिलीभगत से उसकी ये दशा हुई है। JIO predataory pricing करके मार्केट से सबको आउट कर रहा है जिसे केंद्र की भाजपा सरकार का शह प्राप्त है क्योंकि रिलायंस से भाजपा को चंदा मिलता है और BSNL से कुछ नहीं?
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इन यूनियन वालों से कोई पूछे 2011 में सबसे ज़्यादा घाटा हुआ था तब तो JIO नहीं थी? भाजपा सरकार भी नहीं थी ? तब ये घाटा क्यों हुआ था? तब आप धरने पे क्यों नहीं थे? क्या इसीलिए कि तब आपकी सैलरी आती थी वो भी पुराने जमा कैश रिज़र्व से? माने आपको घाटे लाभ से कोई लेना देने नहीं था! यहाँ तक कि कर्मचारी यूनियन ने अपने कम्पनी का प्रोफ़िट लॉस शीट भी नहीं देखा होगा! अपने स्वार्थ पूर्ति होती थी,
तो धरना क्यों देना?
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दूसरा इनसे कोई पूछे कि वर्ष 2004 में BSNL सबसे ज़्यादा मुनाफ़े में थी, तब केंद्र में भाजपा सरकार थी, तब क्या BSNL भाजपा को चंदा देती थी , इसलिए मुनाफ़े में थी?
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JIO के कर्मचारियों से 2 गुना ज़्यादा सैलरी लेकर आधा भी काम न करने वाले BSNL कर्मचारी आधी सैलरी में दोगुना काम करने वाले JIO कर्मचारियों से सीखने के बजाए आरोप लगा रहे हैं कि JIO predataory pricing कर रहा है..
सरकार BSNL को बर्बाद कर रही है!
क्या सरकार लोगों को बोल रही है कि JIO ख़रीदो..?
JIO सस्ते में अच्छी सेवा दे रहा है इसलिए JIO मार्केट में लीड ले रहा है…
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रही बात predataory pricing की तो predator तो ख़ुद BSNL का असंवेदनशील मैनेजमेंट है और साथ ही कर्मचारी यूनियन है जिसने BSNL को खा लिया। अपने ही बोझ तले दबा दिया तो दोषी कोई और क्यों?
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और
सबसे घटिया चीज़ की अपने स्वार्थ परता को सही सिद्ध करने के लिए PSU के नाम पर राष्ट्रवाद का मुखौटा ओढ़ रहे हैं। कम्पनी के घाटे में होने के बावजूद जो यूनियन सैलरी हाइक के लिए हड़ताल पे था बिना इसकी परवाह किए की इसके दूरगामी परिणाम क्या होंगे, आज ख़ुद पे पड़ी तो राष्ट्रवाद याद आ गया! जिस कर्मचारी यूनियन ने अपने कम्पनी के हित अहित की नहीं सोची, कस्टमर फ़ोकस नहीं रखा, कस्टमर को कष्ट देते रहें, वो राष्ट्र के हित अहित की बात किस मुँह से कर रहे है..??
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ऐसा नहीं है की निजी क्षेत्र केवल टेलिकॉम सेक्टर में ही आएँ। पावर सेक्टर में भी NTPC जैसे PSU को निजी क्षेत्र से कड़ी टक्कर मिली। लेकिन समय रहते कम्पनी ने कई क्रांतिकारी, कठोर व दूरदर्शी क़दम उठाये..
2007 में क़रीब 27000 MW वाली कम्पनी में लगभग… 23000-24000 स्टाफ़ थे। आज कम्पनी लगभग 54000 MW बन गई है लेकिन स्टाफ़ घटकर क़रीब 21000 हो गए हैं…
वर्कलोड पहले से दोगुना हो चुका है, ये सबने अनुभव किया लेकिन स्पर्धा के दौर में अगले कुछ वर्षों तक NTPC ने अपना भविष्य सुरक्षित कर लिया है…
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अर्थात
जब आप स्पर्धा में हो तो रोना बंद करो… यदि निजी क्षेत्रों के पास कुछ सहूलियतें हैं तो सरकारी क्षेत्रों ने पास निजी क्षेत्रों से कहीं ज़्यादा Financial RISK लेने की क्षमता है, नए क्षेत्रों में निवेश करके उदाहरण प्रसुस्त करने की क्षमता है, अन्य देशों में business expand करने की क्षमता है जो निजी क्षेत्रों के पास नहीं है…
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लेकिन मटरगस्ती करते हुए सैलरी बराबर मिलती रहे, सपना केवल इतना ही हो तो बात और है। अभी इस हरामखोरी का पूर्ण स्वामित्व केवल पूर्ण सरकारी कर्मचारियों के पास ही है, अर्ध सरकारी वालों का भविष्य इस हरामखोरी के लिए सेक्योर नहीं है। इसीलिए ग़लतफ़हमी घातक सिद्ध होती है…
साभार:- अश्विनी कुमार
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